नवरात्रि का पहला दिन: माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है, जानिए शैलपुत्री माँ का मंत्र, कथा और आरती
25 September 2024, नवरात्रि, देवी दुर्गा की उपासना का पर्व है, जो पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पावन पर्व के नौ दिनों में, माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित होता है, जो देवी दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इस दिन भक्तजन माँ शैलपुत्री की पूजा करके अपने जीवन में स्थिरता, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
माँ शैलपुत्री कौन हैं?
माँ शैलपुत्री, पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। वे पिछले जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती ने अपने पति भगवान शिव के अपमान से दुखी होकर यज्ञ में स्वयं को भस्म कर दिया था। अगले जन्म में वे हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। माँ शैलपुत्री की आराधना से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन के कठिनाइयों को पार करने में सक्षम होता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा का फल
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष महत्व रखती है। माँ शैलपुत्री को शक्ति, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। इस दिन की पूजा से भक्तजन अपने जीवन में स्थिरता प्राप्त करते हैं और जीवन के सभी संकटों से मुक्ति पाते हैं। माँ शैलपुत्री अपने भक्तों को साहस और धैर्य प्रदान करती हैं, जिससे वे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके पूजा शुरू की जाती है। माँ शैलपुत्री को सफेद वस्त्र, लाल फूल और गाय का घी विशेष रूप से अर्पित किया जाता है। गाय के घी से उनका दीपक जलाने से घर में शांति और समृद्धि आती है। पूजा के दौरान भक्तजन माँ शैलपुत्री के मंत्रों का जाप करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
माँ शैलपुत्री का मंत्र
माँ शैलपुत्री की आराधना के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
"वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढाम् शूलधराम् शैलपुत्रीम् यशस्विनीम्॥"
इस मंत्र के जाप से जीवन में सौभाग्य और उन्नति प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माँ शैलपुत्री का जन्म हिमालय के घर हुआ था। पिछले जन्म में वे सती थीं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। लेकिन अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ में अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में वे शैलपुत्री के रूप में जन्मीं और फिर से भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं। माँ शैलपुत्री का यह स्वरूप भक्तों को प्रेम, शक्ति और समर्पण का संदेश देता है। माँ शैलपुत्री को देवी पार्वती और देवी हेमवती के नाम से भी जाना जाता है।
नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री की पूजा से शुरू होता है। उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन विधिपूर्वक पूजा करना अत्यंत आवश्यक होता है।
माँ शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।