इस मंदिर के दर्शन मात्र से खत्म हो जाता है काल सर्प दोष।
प्रयागराज, जिसे संगम नगरी भी कहा जाता है, अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यह जगह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक मानी जाती है। संगम के संगम स्थल पर जहां त्रिवेणी संगम का मिलन होता है, वहीं कुछ खास मंदिरों की मौजूदगी भी यहां के धार्मिक महत्व को और बढ़ाती है। इन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है नागवासुकी मंदिर, जो नाग देवताओं की पूजा के लिए जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सी के तौर पर किया था। वहीं, समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था। इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है। जो भी श्रद्धालु सावन मास में नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है, उसकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी के दिन दूर दराज से लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए यहां पहुंचते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह मशहूर नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने के लिए खुद गया. जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो मूर्ति से अचानक दूध की धार निकली और तेजी से उसके चेहरे के ऊपर पड़ने लगी. धार इतनी तेज थी कि औरंगजेब घबरा गया और बेहोस हो गया. इसके बाद उसने इस मंदिर में सिर झुकाया और चला गया.
प्राचीन नागवासुुकि मंदिर पवित्र गंगा तट के समीप शहर के दारागंज मुहल्ले में स्थित है। यहां नागदेव के दर्शन-पूजन को वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालु आते रहते हैं लेकिन नागपंचमी के पर्व पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। कुंभ, अर्धकुंभ और माघ मेले में प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। नागवासुकि देव के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। नागवासुकि मंदिर में वासुकि नाग के अलावा शेषनाग की मूर्ति है। नागवासुकि देव की पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीचोबीच विराजमान है।