महाशिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन का प्रतीक है। यह त्योहार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शिव भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और पूरी रात जागरण कर शिवजी की आराधना करते हैं। शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और भांग चढ़ाने की परंपरा है, जो शिवजी को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह आत्मचिंतन, साधना, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने का अवसर प्रदान करता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा। यह पर्व शिवजी की शक्ति, त्याग और करुणा का प्रतीक है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत और पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चार पहर की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष रूप से शुभ माना जाता है। महाशिवरात्रि का पर्व भक्तों के जीवन में शांति, समृद्धि और कल्याण लाने वाला होता है।
महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक है। यह पर्व फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। शिव भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
महाशिवरात्रि व्रत कथा
पूर्व काल की बात है चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वह शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। उस शिकारी पर साहूकार का काफी कर्ज था। लेकिन वह उसका कर्ज समय पर नहीं चुका पाया। फिर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया। जिस दिन उसे बंदी बनाया गया उस दिन शिवरात्रि थी। चतुर्दशी के दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा सुनी और शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में कहा। उसके बाद वह फिर शिकार की खोज में निकला। बंदीगृह में रहने के कारण वह बहुत भूखा था। शिकार की तलाश में वह बहुत दूर निकल आया। अंधेरा होने पर उसने जंगल में ही रात बिताने का फैसला किया और एक पेड़ पर चढ़ गया।
उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था जो बेलपत्र के पत्तो से ढका हुआ था। शिकारी को उसके बारे में जानकारी नहीं थी। पेड़ पर चढ़ते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वह शिवलिंग पर गिरती रहीं। इस तरह से भूखे प्यासे रहकर शिकारी का शिवरात्रि का व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। रात के समय एक हिरणी पानी पीने तालाब पर आई। शिकारी जैसे ही उसका शिकार करने जा रहा था भी हिरणी बोली मैं गर्भवती हूं शीघ्र ही प्रसव करुंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे। मैं बच्चे को जन्म देकर तुरंत तुम्हारे सामना आ जाउंगी। तब मुझे मार लेना।
शिकारी ने हिरणी को जाने दिया। इस दौरान अनजाने में कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए। इस तरह उसने अंजाने में प्रथम प्रहर की पूजा भी संपन्न कर ली। कुछ देर बार एक हिरणी उधर से निकली। जैसे ही शिकारी उसे मारने के लिए धनुष बाण चढ़ाया तो हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया ह शिकारी में थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातूर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की तलाश में हूं। अपनी पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। रात का आखिरी पहर बीत रहा था। तब भी कुछ बेल पत्र शिवलिंग पर जा गिरे।
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि महाशिवरात्रि के दिन सच्चे मन से शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
महाशिवरात्रि व्रत की पूजा विधि
स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, और बेलपत्र अर्पित करें।
चार पहर की पूजा करें और हर पहर में शिवजी का विशेष अभिषेक करें।
महामृत्युंजय मंत्र और 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने और पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। यह दिन व्यक्ति को आत्मशुद्धि और ध्यान के लिए प्रेरित करता है। शिवजी की कृपा से भक्त को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
महाशिवरात्रि व्रत कथा शिवजी की भक्ति और उनके आशीर्वाद की महिमा को दर्शाती है। इस दिन किए गए उपवास और पूजा से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि भी आती है। आप भी इस पवित्र पर्व पर व्रत रखें और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।