रामानुजाचार्य का मृत शरीर 900 साल से आज भी सुरक्षित है इस मंदिर मे, जानिए रामानुजाचार्य जी की रोचक बाते
Ramanujacharya Ka Jivan Parichay: रामानुजाचार्य, जिन्हें भगवान विष्णु के एक उत्साही भक्त के रूप में जाना जाता है, 11वीं और 12वीं शताब्दी के एक महान हिंदू दार्शनिक, धर्मशास्त्री और समाज सुधारक थे। वे 'विशिष्टाद्वैत' दर्शन के प्रणेता थे, जो वेदांत दर्शन के तीन मुख्य स्कूलों में से एक है। रामानुजाचार्य ने अपने जीवनकाल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।
रामानुजाचार्य जयंती हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो महान संत रामानुजाचार्य के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। रामानुजाचार्य को विशेष रूप से उनकी अद्वितीय धार्मिक और दार्शनिक शिक्षाओं के लिए जाना जाता है, जिन्होंने भक्ति और वैष्णववाद को बढ़ावा दिया। उनकी पूजा और शिक्षाओं का प्रभाव आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के बीच गहरा है।
संत रामानुजाचार्य वैष्णव परंपरा के महान दार्शनिक के तौर पर जाने जाते हैं। हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इनकी जयंती मनाई जाती है जो इस साल 12 मई को पड़ी है। इस शुभ अवसर पर जानिए रामानुजाचार्य का जीवन परिचय।
रामानुजाचार्य का जीवन परिचय
रामानुजाचार्य का जन्म 1017 ईस्वी में तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदूर में हुआ था। उनके जन्म का नाम इलायाझार था। रामानुजाचार्य ने अपने जीवनकाल में वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता का गहन अध्ययन किया और अपने अनुयायियों को भक्ति मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन दिया। उनका मुख्य संदेश था कि भगवान की भक्ति और प्रेम के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
रामानुजाचार्य एक महान संत होने के साथ-साथ दार्शनिक भी थे। ये हिंदू धर्म शास्त्र के बड़े जानकार थे। इनका जन्म तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर गांव में हुआ था। हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को रामानुजाचार्य जी की जयंती मनाई जाती है और इस साल 12 मई को इनकी 1007वां जन्म वर्षगांठ मनाई जाएगी। इनकी जयंती को भारत के दक्षिणी और उत्तरी हिस्सों में बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
- जन्म - 25 अप्रैल 1017
- जन्म स्थान - श्रीपेरंबदूर, तमिलनाडु
- मृत्यु - 1137 CE (120 वर्ष की आयु)
- पिता - केशव सोमजी
- माता - कांतिमथी
- गुरु - यादव प्रकाश
- आराध्य - भगवान विष्णु
- भाषा - तमिल और संस्कृत
- प्रसिद्ध - दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता
आज भी सुरक्शित है रामानुज आचार्य का मृत शरीर
तमिलनाडु के श्री रंगम में स्थित रंगनाथ स्वामी मंदिर के अंदर सनातन धर्म के वैष्णव संस्कृति के जगद्गुरु रामानुजाचार्य का पार्थिव शरीर रखा हुआ है। श्री रंगनाथस्वामी मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में श्रीरंगम के कावेरी नदी के तट पर स्थित है। कहा जाता है रामानुजाचार्य इस जगह पर अपनी वृद्धावस्था में आए थे। कहा जाता है कि करीब 120 साल की आयु तक रामानुजाचार्य श्रीरंगम में रहे और बाद में उन्होंने भगवान श्री रंगनाथ से अपना देह त्यागने की अनुमति ली। माना जाता है कि स्वामी रामानुजाचार्य की आज्ञा के अनुसार ही उनके मूल शरीर को इस मंदिर में रखा गया है। बता दें ये दुनिया का एकमात्र ऐसा हिंदू मंदिर है जहां वास्तविक मृत शरीर को मंदिर के अंदर रखकर उसकी पूजा की जाती है। मंदिर में रामानुजाचार्य की ममी यानी शरीर सामान्य बैठने की दशा में है। रामानुजाचार्य जी के शरीर को सुरक्षित रखने के लिए उनके शरीर को हर रोज हल्दी का लेप लगाया जाता है। इसे अलावा साल में 2 से 3 बार केसर, चंदन और कपूर का मिश्रण चढ़ाया जाता है। जिससे इनका शरीर बैक्टीरिया या फंगस से सुरक्षित रह सके।
रामानुजाचार्य जयंती इस तरह मानते है
रामानुजाचार्य जयंती उनके जीवन और शिक्षाओं को स्मरण करने का अवसर है। इस दिन, भक्तगण मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और रामानुजाचार्य के उपदेशों का अनुसरण करते हैं। यह दिन हमें उनके द्वारा दिए गए भक्ति, ज्ञान और सेवा के संदेश को पुनः स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।
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